Ad

Hindi News

ग्लैमर की चकाचौंध को छोड़ 5 साल से खेती कर रहे मशहूर एक्टर की दिलचस्प कहानी

ग्लैमर की चकाचौंध को छोड़ 5 साल से खेती कर रहे मशहूर एक्टर की दिलचस्प कहानी

आपने ये तो बहुत बार सुना और पढ़ा होगा कि किसी ने अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर खेती किसानी शुरू की। लेकिन, क्या आपने सुना है, कि कोई टीवी एक्टर अपने ग्लेमर के पीक पर पहुंचकर खेती किसानी का रुख करे। जी हाँ, आज हम आपको एक ऐसे ही मशहूर एक्टर की कहानी सुनाऐंगें, जिसने कि अपने कामयाब एक्टिंग करियर को छोड़कर किसान बनने का फैसला लिया। उन्होंने खुद इसके पीछे की वजह का चौंकाने वाला खुलासा किया है। 

एक्टिंग को ग्लैमर की दुनिया भी कहा जाता है और अगर कोई इस दुनिया में रच-बस जाए तो उसका इससे बाहर निकलना काफी कठिन हो जाता है। लेकिन एक एक्टर ऐसा भी है, जिसने एक्टिंग में एक कामयाब करियर होने के बावजूद इस दुनिया को अलविदा कह दिया और किसान बनकर खेती करने लगा। इस एक्टर ने पांच सालों तक गांव में रहकर खेती की और फसल उगाई।

ग्लैमर की दुनिया से खेती का रुख 

ग्लैमर की दुनिया छोड़ किसान बनने वाले इस एक्टर का नाम राजेश कुमार है। राजेश ने 'साराभाई वर्सेज साराभाई' में रोसेश बनकर खूब नाम कमाया। इसके अलावा वे 'यम किसी से कम नहीं', 'नीली छतरी वाले', 'ये मेरी फैमिली' जैसे शो में दिखाई दिए और अब हाल ही में रिलीज हुई फिल्म तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया में दिखाई दिए हैं। लेकिन इससे पहले राजेश 5 सालों तक बिहार में खेती करते रहे।

ये भी पढ़ें: युवक की किस्मत बदली सब्जियों की खेती ने, कमाया बेहद मुनाफा

मैं अगली पीढ़ी के लिए क्या कर रहा हूं?

मीडिया एजेंसी को दिए एक इंटरव्यू में राजेश ने कहा- '2017 में, टीवी पर मैं अपने एक्टिंग करियर की ऊंचाईयों पर था, जब मैंने खेती करने का फैसला किया। जब मैं टीवी करने का पूरा लुत्फ उठा रहा था, तो मेरा दिल मुझसे लगातार पूछ रहा था कि एंटरटेनमेंट के कुछ टेप छोड़ने के अलावा, मैं अगली पीढ़ी के लिए क्या कर रहा हूं?'

राजेश ने किस वजह से एक्टिंग से ब्रेक लिया ?

ग्लैमर की दुनिया छोड़ किसान का पेशा अपनाने के बारे में पूछने पर राजेश ने कहा, 'मैं समाज में योगदान देने के लिए कुछ खास या एक्स्ट्रा नहीं कर रहा था। मेरे बच्चे मुझे कैसे याद रखेंगे? एक्टिंग आपने अपने लिए की, अपनी सेफ्टी के लिए की, अपनी कमाई के लिए की। मैंने मन में सोचा कि मैं अपने पीछे कोई कदमों के निशान कैसे छोड़ूंगा? तभी मैं अपने होम टाउन वापस गया और फसलें उगाईं।'

ये भी पढ़ें: रघुपत सिंह जी कृषि जगत से गायब हुई ५५ से अधिक सब्जियों को प्रचलन में ला ११ नेशनल अवार्ड हासिल किये

खेती करने के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया 

राजेश कुमार ने आगे कहा कि जब पांच साल तक वे खेती करते रहे तो कई आउटलेट्स ने कहा कि उन्होंने किसान बनने के लिए एक्टिंग छोड़ दी या फिर उनके पास पैसे नहीं थे। हालांकि, उन्होंने इस दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और अपनी एजुकेशन के बलबूते सभी मुश्किलों से बाहर आ पाए। 

छत्तीसगढ़ के ‘भरोसे का बजट’ कितना भरोसेमंद, जानिए असल मायने

छत्तीसगढ़ के ‘भरोसे का बजट’ कितना भरोसेमंद, जानिए असल मायने

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल जल्द ही बजट पेश करने वाले हैं. उन्हों इस बजट को भरोसे का बजट नाम दिया है, हालांकि सीएम के पिटारे से जनता के लिए क्या कुछ निकलने वाला है,न और क्या यह बजट जनता की कसौटियों पर उतर पाएगा, इस बात से पर्दा तो बजट पेश होने के बाद ही उठेगा. लेकिन इससे पहले सीएम ने जनता के नाम संबोधन दिया. जिसमें उन्होंने कई अहम बातों का जिक्र किया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस बार के बजट को भरोसे का बजट कहा है. उन्होंने बजट को यह नाम प्रदेश की जनता जो संबोधन करते वक्त दिया. बजट में क्या ख़ास है, और इसके मायने क्या हैं, इसका बेसब्री से जनता को इन्तजार है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीएम ने गृह विभाग, कृषि विभाग, सिंचाई विभाग, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, रोजगार विभाग और सड़क विभाग से जुड़े अलग अलग मंत्रियों के साथ साथ अफसरों से भी चर्चा की और उसी के आधार पर बजट की रूप रेखा को तैयार किया.

सीएम के कार्यकाल का आखिरी बजट बेहद ख़ास

बताया जा रहा है कि, भूपेश सिंह बघेल सीएम और वित्त मंत्री दोनों का जिम्मा खुद उठा रहे हैं. उनके कार्यकाल का यह आखिरी बजट है. जिस वजह से इस बजट को बेहद खास बताया जा रहा है. विधानसभा चुनाव साल 2023 के चलते हर वर्ग और हर तबके के लोगों को साधने की तैयारी है. वहीं जो कर्मचारी सरकार की नीतियों से रूठे हैं, उन्हें मनाने की कोशिश भी इस बार के बजट में की जाएगी. इसके अलावा सालों से लम्बित पड़ी मांगों को भी पूरा किया जा सकता है. वहीं छत्तीसगढ़ के इस साल के बजट में नियमित समय कई तरह की जनता से जुड़ी घोषणाएं की जा सकती हैं.

ये भी पढ़ें:
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ग्रामीण किसानों की समस्या का तुरंत किया समाधान

बजट में किसानों को मिल सकती है सौगात

किसानों के जरिये सत्ता हासिल करने वाली कांग्रेस सरकार किसानों के हित में बजट के पिटारे से कुछ खास घोषणाएं कर सकती है. हालांकि राज्य में धान की खेती सबसे ज्यादा की जाती है, जिसपर राजनीती भी केन्द्रित रहती है. बताया जा रहा है कि, धान पर बोनस को लेकर केंद्र से लेकर राज्य सरकार के बीच हमेशा से ही खींचतान रहती है. जिस बझ से छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के हित में बड़ा ऐलान कर सजती है. खबरों के मुताबिक धान के अलावा अन्य खाद्यान के समर्थन मूल को लेकर बड़ा तोहफा दिया जा सकता है. वहीं खेती और किसानी से जुड़े उपकरणों में करों में छूट देने के साथ सब्सिडी को बढ़ाया जा सकता है.

अनियमित संविदा कर्मचारियों के सपने हो सकते हैं पूरे

छत्तीसगढ़ के बजट में अनियमित संविदा कर्मचारियों को अच्छी खबर मिल सकती है. बजट के जरिये उनका सपना पूरा हो सकता है. बताया जा रहा है कि, कर्मचारियों के संविलियन की राह आसान हो सकती है. इसके अलावा युवाओं के लिए नौकरी, पुलिस में भर्ती और और शिक्षक में भर्ती समेत कई अहम ऐलान हो सकता है.

ये भी पढ़ें:
छत्तीसगढ़ सरकार ने शुरू की मुहिम, अब ऑनलाइन बेचे जा रहे उपले और गोबर से बने प्रोडक्ट

युवाओं और महिलाओं के लिए भी खास है बजट

इस बजट में युवाओं और महिलाओं के लिए भी काफी कुछ हो सकता है. जिसमें स्टार्टअप योजना से लेकर इनोवेशन सेंटर खोलने और महिलाओं को सेल्फ डिपेंड बनाने को लक्सर बड़ा ऐलान किया जा सकता है.

यहां पर भी सरकार की नजर

अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और आदिवासी वर्ग को वोट को साधने का सरकार का सबसे बड़ा मास्टर प्लान है. जिसके लिए सरकार कई बड़े ऐलान कर सकती है.
किसानों  के लिए इस राज्य सरकार की बड़ी घोषणाएं, फसलों के नुकसान पर मिलेगा इतना मुआवजा

किसानों के लिए इस राज्य सरकार की बड़ी घोषणाएं, फसलों के नुकसान पर मिलेगा इतना मुआवजा

पिछले 2 सप्ताह में मध्य प्रदेश में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने जमकर कहर ढाया है। इस दौरान राज्य में गेहूं, चना, सरसों और मसूर की खेती बुरी तरह से प्रभावित हुई है। ओलावृष्टि के कारण गेहूं की फसल खेतों में पूरी तरह से बिछ गई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है। पिछले सप्ताह ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आपदा से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए सर्वे के आदेश दिए थे। यह सर्वे पूरा हो चुका है और इसकी विस्तृत रिपोर्ट मध्य प्रदेश शासन को भेजी जा चुकी है। रिपोर्ट के आधार पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि सरकार 50 फीसदी तक बर्बाद हुई फसल पर 32 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा प्रदान करेगी। इसके अलावा किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ भी दिलवाया जाएगा। साथ ही फसलों को हुए नुकसान का सैटेलाइट से सर्वे भी करवाया जाएगा। जिसमें सरकार के तीन विभाग संयुक्त रूप से फसल के सर्वे का काम करेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे कहा है कि ओलावृष्टि से जिन किसानों की फसलों का व्यापक नुकसान हुआ है, उनसे फिलहाल कर्ज की वसूली नहीं की जाएगी। साथ ही अब कर्ज का ब्याज सरकार भरेगी। इस दौरान यदि किसी व्यक्ति की ओलावृष्टि या बिजली गिरने से मौत हो गई है तो उसके परिजनों को सरकार 4 लाख रुपये की सरकारी सहायता उपलब्ध करवाएगी।

गाय-भैंस की मृत्यु पर भी मिलेगी सहायता राशि

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि फसल के नुकसान के अलावा यदि आपदा के दौरान किसी की गाय या भैंस की मृत्यु हो गई है तो ऐसे लोगों को 37 हजार रुपये प्रति जानवर की दर से सहायता राशि उपलब्ध कारवाई जाएगी। इसके साथ ही भेड़-बकरी की मृत्यु पर 4 हजार रुपये तथा बछड़ा और बछिया की मृत्यु पर 20 हजार रुपये दिए जाएंगे। मुर्गा और मुर्गियों का नुकसान होने पर 100-100 रुपये दिए जाएंगे। यदि आपदा से किसी के घर को नुकसान हुआ है तो उसके घर की मरम्मत के लिए भी सहायता उपलब्ध कारवाई जाएगी। ये भी पढ़े: यहां मिल रहीं मुफ्त में दो गाय या भैंस, सरकार उठाएगी 90 फीसद खर्च

रबी फसल के लिए दोबारा रजिस्ट्रेशन करवा पाएंगे किसान

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ऐसे किसान जिनकी फसल बर्बाद हो गई है और उनके घर में उनकी बेटी की शादी है। ऐसे किसानों को सरकार मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत 56 हजार रुपये की सहायता राशि उपलब्ध करवाएगी। साथ ही कन्या के विवाह में भी सहयोग करेगी। इसके साथ ही जो किसान रबी की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पाए हैं, ऐसे किसान फिर से अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। उनके लिए दोबारा पोर्टल खुलवाया जाएगा। ताकि कोई भी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लाभ से छूटने न पाए।
दलहन की इस फसल को ना सूखे की चिंता ना ही अकाल का डर

दलहन की इस फसल को ना सूखे की चिंता ना ही अकाल का डर

जलवायु परिवर्तन के कारण किसान फिलहाल फसल की बुवाई करने से पूर्व कई बार विचार विमर्श कर रहे हैं। दरअसल, किसान अब कम संसाधन और कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की खेती करने की दिशा में चल रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में हम किसानों को खेजड़ी की खेती की जानकारी देने जा रहे हैं। जो कि असिंचित क्षेत्रों में भी सुगमता से की जा सकती है। इस खेजड़ी की खेती पर सूखे एवं अकाल जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों का भी कोई फरक नहीं पड़ता है।

खेजड़ी की फसल दलहन में शामिल है

दलहन फसलों में से शम्मिलित एक खेजड़ी अत्यंत अहम फसल है। जिसमें कई सारे
औषधीय गुण भी मौजूद हैं। बदलते समय में उपयोगी फसलों की खेती अधिकांश तौर पर की जा रही है। ऐसी स्थिति में खेजड़ी की खेती मुनाफेमंद साबित हो सकती है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि खेजड़ी की पकी सांगरीयों में तकरीबन 8-15 प्रतिशत शर्करा, 8-12 प्रतिशत रेशा, 8-15 प्रोटीन, 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइडे्रट, 2-3 प्रतिशत वसा, 0.4-0.5 प्रतिशत कैल्सियम, 0.2-0.3 प्रतिशत लौह तत्व के अतिरिक्त बाकी सारे भी सुक्ष्म तत्व मौजूद होते हैं। जो कि मानव समेत पशुओं की सेहत के लिए भी काफी ज्यादा गुणकारी मानी जाती है। खेजड़ी से उत्तम कोटि की गुणवत्ता वाली पत्तियां भी प्राप्त होती हैं। जो राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पशुपालन का प्रमुख आधार होती हैं। इस वजह से खेजड़ी की खेती से किसान काफी मोटी कमाई कर सकते हैं।

खेजड़ी की खेती के लिए कैसी मिट्टी होनी चाहिए

खेजड़ी के पेड़ प्रमुख रूप से मरु क्षेत्रों में मिलने वाली क्षारीय भूमि, बालू रेत और रेत के टीलों में अच्छी उन्नति करती है। ये भी पढ़े: इस पेड़ की छाल से होती है मोटी कमाई, दवाई बनाने में होती है इस्तेमाल

खेजड़ी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

खेजड़ी एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र का पौधा है। जो कि सूखा रोधी गुणों के अतिरिक्त सर्दियों में पड़ने वाले पाले साहित ही गर्मियों के उच्च तापमान को सुगमता से सहन कर लेता है।

बुवाई से पहले ऐसे करें भूमि की तैयारी

बुवाई से पहले खेत को हल के साथ 3 से 4 बार जुताई करके तैयार करना चाहिए। जमीन को सुविधाजनक आकार के हिस्सों में विभाजित करके मुख्य एवं उप चैनल निर्धारित करते हैं। उसके बाद 5 मीटर x 5 मीटर की दूरी पर 45 सेमी x 45 सेमी x 45 सेमी आकार के गड्ढे खोदे जाते हैं। उनको 1:1 के अनुपात में शीर्ष मृदा एवं अच्छे ढंग से विघटित गोबर की खाद से भरा जाता है।

सिंचाई प्रबंधन किस तरह किया जाए

ज्यादा से ज्यादा विकास और उपज प्राप्त करने के लिए मासिक सिंचाई की आवश्यकता रहती है। परंतु, पानी की कमी वाले इलाकों में बिना किसी सिंचाई के सिर्फ बरसात के पानी के सहारे भी फसल अच्छी उन्नति कर सकती है। ये भी पढ़े: इस राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था हेतु मुहैया कराई गई 463 करोड़ रुपए

इस तरह करें नर्सरी की तैयारी

बीज से तैयार पौधों में अंकुरण क्षमता 90 प्रतिशत तक होती है, जिसके लिए एक हेक्टेयर हेतु तकरीबन 20 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। सर्व प्रथम 15 से 20 मिनट हेतु सल्फ्युरिक एसिड के साथ बीज को उपचारित करना चाहिए। उसके बाद मई के दौरान 2.0 सेमी गहराई पर पॉलीबैग में बोया जाता है। पौधे अंकुरित होने के उपरांत इनको कहीं और स्थापित किया जा सकता है। जुलाई और अगस्त महीने में तैयार गड्डो में एक महीने पुरानी रोपण को प्रत्यारोपित कर सकते हैं।
हरियाणा सरकार ने पराली आदि जैसे अवशेषों से पर्यावरण को बचाने की योजना बनाई

हरियाणा सरकार ने पराली आदि जैसे अवशेषों से पर्यावरण को बचाने की योजना बनाई

यह परियोजना भूमिगत स्तर पर समुदायों में जागरूकता बढ़ाने एवं वैकल्पिक विधियों को अपनाने को लेकर बढ़ावा देने के लिए कार्य करेगी, जिससे फसल अवशेष जलाने की जरूरत कम पड़ेगी। एस एम सहगल फाउंडेशन ने वालमार्ट फाउंडेशन एवं फ्लिपकार्ट फाउंडेशन के साथ जुड़कर कृषि अवशेष के प्रभावी प्रबंधन के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को प्रोत्साहन देने और बच्चों एवं युवाओं में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए एक एकीकृत परियोजना को जारी करने का ऐलान किया है। प्रोजेक्ट की विस्तृत जानकारी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से चण्डीगढ़ में साझा की गई। प्रोजेक्ट को वालमार्ट फाउंडेशन एवं फ्लिपकार्ट फाउंडेशन से मिले अनुदान के जरिए से हरियाणा में क्रियान्वित किया जाएगा। ऐसा कहा जा रहा है, कि इसका उद्देश्य हरियाणा में फसली अवशेषों को जलाने की वजह प्रदूषण के रूप में होने वाले दुष्प्रभाव को कम करना है।

इससे तकरीबन 100 गांवों को सहायता मिलेगी

मृदा के स्वास्थ्य, मानव कल्याण एवं पर्यावरण पर फसल अवशेष जलाने के नुकसानदायक प्रभावों को देखते हुए वॉलमार्ट फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना का उद्देश्य 100 गांवों के 15,000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित करना है। किसानों को मृदा स्वास्थ्य एवं फसल उत्पादकता में सुधार पर ध्यान देने के विषय में बताया जाएगा। इसके साथ ही फसल अवशेष प्रबंधन हेतु पर्यावरण के अनुकूल स्थायी निराकरण के सुझावों के साथ-साथ फसल अवशेष जलाने से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन को कम करने के संबंध में प्रशिक्षित किया जाएगा। इन समाधानों में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर का इस्तेमाल और धान की कम अवधि वाली प्रजातियों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ किसानों के लिए क्षमता निर्माण के कदम शम्मिलित हैं।

ये भी पढ़ें:
जानिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा होता है।

हजारों बच्चों और युवाओं को जागरुक किया जाऐगा

बतादें, कि इसके अलावा फ्लिपकार्ट फाउंडेशन से प्राप्त अनुदान से इन जनपदों के 60 गांवों में 5,000 बच्चों एवं युवाओं में जागरूकता बढ़ाने और पर्यावरण को लेकर जागरूकता उतपन्न करने की दिशा में भी कार्य किया जाएगा। क्योंकि, यह क्षेत्र फसल अवशेष जलाने की परेशानी से सबसे ज्यादा प्रभावित है। साथ ही, यहां परिवार एवं समाज में परिवर्तन लाने के लिए युवा आगे बढ़कर कार्य कर सकते हैं। यह परियोजना जमीनी तौर पर समुदायों में जागरूकता को बढ़ाने और वैकल्पिक तरीकों को अपनाने को लेकर बढ़ावा देने का कार्य करेगी, जिससे फसल अवशेष जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसके अतिरिक्त, युवाओं में जागरूकता पैदा करने और समाज में बदलाव का वाहक बनने के लिए उन्हें शिक्षित करने पर भी बल दिया जाएगा। एस एम सहगल फाउंडेशन एक सहयोगी नेटवर्क बनाने और हरित भविष्य को प्रोत्साहन देने के लिए शोध संस्थानों, शिक्षाविदों और सामाजिक उद्यमों समेत बहुत से अन्य संबंधित पक्षों के साथ मिलकर कार्य करता रहा है।

सीएम खट्टर का इस पर क्या कहना है

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है, कि “हरियाणा सरकार बेहतर स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार की दिशा में फसलों के अवशेष प्रबंधन का उचित निराकरण खोजने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने एक व्यापक रूपरेखा तैयार की है, जिसमें मजबूत एवं कुशल फसल अवशेष प्रबंधन के उपाय, प्रभावी निगरानी व इस लक्ष्य को लेकर लगातार जागरूकता अभियान शम्मिलित हैं। हम वॉलमार्ट फाउंडेशन, फ्लिपकार्ट फाउंडेशन और एस. एम. सहगल फाउंडेशन को इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि ये परियोजनाएं हमारे समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगी.''
सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि युवा किसान मुकेश का कहना है, कि नेट हाउस निर्मित करने के लिए सरकार की ओर से अनुदानित धनराशि भी मिलती है। शुरुआत में नेट हाउस स्थापना के लिए उसे 65% की सब्सिडी मिली थी। हालांकि, वर्तमान में हरियाणा सरकार ने अनुदान राशि को घटाकर 50% कर दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज भी सरकारी नौकरी के पीछे लोग बिल्कुल पागल हो गए हैं। प्रत्येक माता- पिता की यही चाहत होती है, कि उसकी संतान की सरकारी नौकरी लग जाए, जिससे कि उसकी पूरी जिन्दगी सुरक्षित हो जाए। अब सरकारी नौकरी बेशक निम्न स्तर की ही क्यों न हो। परंतु, आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे, जो कि अच्छी-खासी सरकारी नौकरी को छोड़ अब गांव आकर खेती कर रहा है।

किसान मुकेश कहाँ का रहने वाला है

दरअसल, हम जिस युवा किसान के संबंध में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम मुकेश कुमार है। मुकेश हरियाणा के करनाल जनपद का रहने वाला है। पहले वह हरियाणा बोर्ड में सरकारी नौकरी करता था। नौकरी के दौरान मुकेश को प्रति महीने 45 हजार रुपये सैलरी मिलती थी। परंतु, इस सरकारी कार्य में उसका मन नहीं लगा, तो ऐसे में उसने इस नौकरी को लात मार दी। आज वह अपनी पुश्तैनी भूमि पर नेट हाउस विधि से खेती कर रहा है, जिससे उसको काफी अच्छी कमाई हो रही है।

ये भी पढ़ें:
किसानों की फसल को बचाने के लिए शेडनेट पर मिलेगा ७५% तक का अनुदान

किसान मुकेश लोगों को रोजगार मुहैय्या करा रहा है

किसान मुकेश अन्य बहुत से किसानो के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। किसान मुकेश का कहना है, कि उसने अपनी भूमि पर चार नेट हॉउस तैयार कर रखे हैं। इनके अंदर किसान मुकेश खीरे की खेती करते हैं। किसान मुकेश के मुताबिक खीरे की मांग गर्मियों में काफी ज्यादा बढ़ जाती है। अब ऐसे में किसान मुकेश लगभग 2 वर्षों से खीरे की खेती कर रहा। बतादें कि इससे किसान मुकेश को काफी अच्छी कमाई हो रही है। यही वजह है, कि वह आहिस्ते-आहिस्ते खीरे की खेती का रकबा और ज्यादा बढ़ाते गए हैं। इसके साथ साथ मुकेश ने अपने आसपास के बहुत से लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है।

खीरे की वर्षभर खेती की जा सकती है

मुकेश का कहना है, कि एक नेट हाउस निर्मित करने के लिए ढ़ाई से तीन लाख रुपये की लागत आती है। परंतु, इसके अंदर खेती करने पर आमदनी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। युवा किसान का कहना है, कि खीरे की बहुत सारी किस्में हैं, जिसकी नेट हाउस के अंदर सालों भर खेती की जा सकती है।

ये भी पढ़ें:
किसान सुबोध ने दोस्त की सलाह से खीरे की खेती कर मिशाल पेश करी है

ड्रिप विधि से सिंचाई करने पर जल की काफी कम बर्बादी होती है

किसान मुकेश का कहना है, कि उनको खीरे की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह लगी है कि इसकी खेती में जल की काफी कम खपत होती है। दरअसल, नेट हॉउस में ड्रिप विधि के माध्यम से फसलों की सिंचाई की जाती है। ड्रिप विधि से सिंचाई करने से जल की बर्बादी बेहद कम होती है। इसके साथ ही पौधों की जड़ो तक पानी पहुँचता है। किसान मुकेश अपने खेत में पैदा किए गए खीरे की सप्लाई दिल्ली एवं गुरुग्राम समेत बहुत सारे शहरों में करता है। वर्तमान में वह 15 रूपए किलो के हिसाब से खीरे बेच रहा है।
इस जगह पौधों को दिया जा रहा बिजली करंट, आखिर क्या वजह है

इस जगह पौधों को दिया जा रहा बिजली करंट, आखिर क्या वजह है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वैज्ञानिकों का कहना है, कि यदि यह तकनीक कामयाब होती है, तो अति शीघ्र इसको संपूर्ण विश्व में फैला दिया जाएगा। साथ ही उन्होंने बताया है, कि इसकी सहायता से वो वैश्विक खाद्य संकट से भी निपट सकते हैं। कृषि तीव्रता से परिवर्तित हो रही है। लोग आधुनिक कृषि के माध्यम से फसलों की पैदावार उम्मीद से भी अधिक कर रहे हैं। हालांकि, इसके लिए किसान भांति-भांति के प्रयोग भी करते हैं। इस लेख में हम आपको एक ऐसे ही एक्सपेरीमेंट के विषय में बताएंगे। सबसे खास बात यह है, कि यदि ये प्रयोग सफल रहा तो बेहद शीघ्रता से आपको खाद एवं केमिकल रहित सब्जियां खाने को मिल सकती हैं। क्योंकि इनका जल्दी से विकास और बढ़वार करने के लिए केमिकल युक्त खाद के स्थान पर बिजली के झटके दिए जा रहे।

इंपीरियल कॉलेज लंदन में एक प्रयोग किया जा रहा है

यह एक प्रकार का प्रयोग है, जिसको इंपीरियल कॉलेज लंदन में किया जा रहा है। यहां प्लांट मॉर्फोजेनेसिस की एक परियोजना के अंतर्गत वर्टिकल फार्मिंग को परिवर्तित करने के लिए इलेक्ट्रोड युक्त हाइड्रोजेल क्यूब्स का उपयोग किया जा रहा है। दरअसल, इस एक्सपेरीमेंट के दौरान इन ट्रांसल्यूसेंट क्यूब्स में उपस्थित नेटवर्क स्ट्रक्चर में तरलता को स्थिर बनाए रखा जाता है। बतादें कि इसके लिए इन हाइड्रोजेल क्यूब्स में बिजली के हल्के-हल्के झटके दिए जाते हैं। उसके पश्चात इसी की वजह से लैब में उपस्थित छोटी एयर टनल्स से हरी-हरी पत्तियां निकलती हैं।

ये भी पढ़ें:
वर्टिकल यानी लंबवत खेती से कम जगह और कम समय में पैदावार ली जा सकती है

वैज्ञानिकों ने कहा कि यह तकनीक विश्वभर में फैल जाऐगी

वैज्ञानिकों का कहना है, कि यदि ये तकनीक सफल रही तो अति शीघ्र इसे विश्व भर में फैला दिया जाएगा। बतादें, कि वैज्ञानिकों द्वारा इस तकनीक को बेहद शानदार बताया जा रहा है। उनका कहना है, कि इसकी सहायता से वो वैश्विक खाद्य संकट से भी निपट सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है, कि इसके इस्तेमाल से सब्जियां केमिकल मुक्त होंगी जो कि स्वास्थ्य के लिए काफी बेहतर होगा। साथ ही, भारत एवं चीन जैसे देश के लिए जहां पर आबादी अत्यधिक है ये तकनीक इनके लिए बेहद फायदेमंद होगी। किसान इस तकनीक की सहायता से अपने खेतों के साथ-साथ छोटी छोटी जगहों पर भी भरपूर मात्रा में सब्जियां उगा पाएंगे। यहां तक की अर्बन किसान जो टेरिस गार्डन में खेती करते हैं, उनके लिए भी यह तकनीक बेहद ही मददगार सिद्ध होगी।
मेरीखेती की टीम ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में आयोजित मेले को कवर किया

मेरीखेती की टीम ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में आयोजित मेले को कवर किया

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में दो दिवसीय किसान व पशुपालन मेले का भव्य आयोजन हुआ। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यहां पहुंचकर कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन देने वाले लोगों को पुरस्कार दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री मान ने कहा कि पंजाब की खेती की आन बान शान एवं पंजाबियों के दिलों के करीब पीएयू ने कृषि क्षेत्र को दिशा दिखाई है। मेले में आकर किसानों ने काफी नवीन तकनीकों के बारे में जाना। सीएम भगवंत मान ने इस दौरान कहा कि जब मैं आ रहा था तो नहर वाले रास्ते पर मुझे यह देखकर खुशी हुई कि पंजाब के नौजवानों ने हाथों में बीजों की बोरियां पकड़ी हुई थीं और वे खेती के लिए जा रहे थे। उन्होंने कहा कि अब खेती के तरीके बदल गए हैं। साइंस ने कृषि को और एडवांस कर दिया है। खेत में सिंचाई के भी अब एक नहीं कई तरीके आ गए हैं।

भारत में पंजाब बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक: मुख्यमंत्री भगवंत मान

सीएम भगवंत मान ने कार्यक्रम में कहा कि पंजाब सरकार ने
बासमती चावल की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहन दिया है। भारत में पंजाब बासमती का सबसे बड़ा उत्पादक है। हमने विदेश में बासमती को लेकर मापदण्डों के विषय में पता किया। विदेश में बासमती के लिए जिन कीटनाशक दवाइयों को लेकर प्रतिबंधित थी। हमारी सरकार द्वारा उन दस की दस स्प्रे पर रोक लगा दी। ताकि बासमती को ज्यादा से ज्यादा खरीदा जाए।

मेरीखेती के संवाददाता ने कृषि मंत्री से की बात

मेरीखेती के संवाददाता सोनेश पाठक जी ने पंजाब के कृषि मंत्री श्री गुरमीत सिंह खुडियां से अपनी वेबसाइट से संबंधित समस्त किसान हितेषी कार्यों के बारे में अवगत कराया। साथ ही, उन्होंने कृषि क्षेत्र में आधुनिक एवं नवीनतम मशीनरी के उपयोग और महत्व के संदर्भ में भी चर्चा की। पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां कृषि उद्योग की सफलता के लिए काफी अवसर होते हैं।
इस राज्य में गोपालक योजना के अंतर्गत बेरोजगार युवाओं को दिया जा रहा 9 लाख का लोन

इस राज्य में गोपालक योजना के अंतर्गत बेरोजगार युवाओं को दिया जा रहा 9 लाख का लोन

यूपी गोपालक योजना के मुताबिक, राज्य के बेरोजगार युवाओं को डेयरी फार्म खोलने के लिए 9 लाख रुपए तक के कर्जे की सुविधा प्राप्त होगी। सरकार की इस योजना का फायदा उन लोगों को मिल सकेगा, जिनके पास कम से कम 5 दुधारू पशु हैं। बेरोजगार युवाओं के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एक अनोखी योजना की शुरुआत की है, जिससे राज्य के युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकें। साथ ही, वह अपनी आर्थिक स्थिति में भी सकारात्मक सुधार कर पाऐं। बतादें, कि योगी सरकार ने राज्य की जनता के लिए गोपालक योजना (Gopalak Yojana) की शुरुआत करी है। इस योजना के तहत राज्य के युवा अपना खुद का डेयरी फार्म खोल सकते हैं। इस कार्य के लिए राज्य सरकार की तरफ से युवाओं को 9 लाख रुपए तक कर्ज की सुविधा मुहैय्या कराई जाऐगी। परंतु, सरकार की यह योजना समस्त युवाओं के लिए नहीं हैं।

ये भी पढ़ें:
गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार की गोपालक योजना के अंतर्गत राज्य के सिर्फ वहीं युवा आवेदन कर पाऐंगे, जिनके पास कम से कम 5 अथवा फिर इससे ज्यादा पशु हैं। चलिए आगे हम इस लेख में आपको सरकार की इस योजना के बारे में जानकारी देंगे। ताकि युवा सरलता से आवेदन कर पाएं।

गोपालक योजना में सिर्फ दुधारू पशु ही शम्मिलित होंगे

गोपालक योजना में गाय-भैंस मतलब कि दुधारू पशुओं को शम्मिलित किया गया है। यदि आप पशु पालक हैं एवं आपके पास पशुशाला भी है, तो ऐसे में भी आप इस योजना से कर्ज का फायदा उठा सकते हैं। परंतु, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें कि आवेदक की आमदनी वार्षिक 1 लाख रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

ये भी पढ़ें:
ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

गोपालक योजना का लाभ उठाने के लिए पात्रता

  • इस योजना का फायदा सिर्फ राज्य के युवाओं को ही मिलेगा यानी की पशुपालक को UP का स्थाई निवासी होना अनिवार्य है।
  • इस योजना का लाभ उठाने के लिए पशुपालक के पास कम से कम 5 पशु होने ही चाहिए।
  • आवेदन की आमदनी वार्षिक 1 लाख से कम होनी चाहिए।
  • आवेदक के पास ऐसा पशु भी होना चाहिए, जो पशु मेले से खरीदा गया हो।
वैज्ञानिकों द्वारा चलाई गई इस परियोजना से किसान कम समय में चंदन की खेती से बनेंगे मालामाल

वैज्ञानिकों द्वारा चलाई गई इस परियोजना से किसान कम समय में चंदन की खेती से बनेंगे मालामाल

चंदन की खेती से कृषक कम लागत लगाकर करोड़ों रूपए तक कमा सकते हैं। परंतु, इसकी पैदावार के लिए 10-15 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, जिसकी वजह से देश के कुछ ही किसान चंदन की खेती करते हैं। साथ ही, केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान ने कम समयांतराल में तैयार होने वाले चंदन के पौधों को विकसित कर रहा है। चंदन का उत्पादन करने से किसान भाइयों को बेहद ही ज्यादा मुनाफा मिलता है। भारत के अधिकांश किसान इसकी खेती की ओर अपनी दिलचस्पी तो दिखाते हैं, परंतु तकनीकी अभाव के कारण वह चंदन की खेती नहीं कर पाते हैं। दरअसल, चंदन के पेड़ों से मुनाफा हांसिल करने के लिए तकरीबन 10-15 सालों तक की लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इसी कड़ी में केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान ने एक पहल की है, जिसमें अच्छे और गुणवत्तापरक चंदन के पौधे विकसित किए जा रहे हैं। फिलहाल इस काम पर वैज्ञानिकों की तरफ से शोध किया जा रहा है, जिससे कि किसानों को कम समयावधि में चंदन की खेती से ज्यादा से ज्यादा फायदा अर्जित हो सके। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि चंदन का उपयोग पूजा-पाठ से लगाकर बाकी विभिन्न प्रकार के शुभ कार्यों में किया जाता है। इसकी वजह से बाजार में चंदन की मांग और कीमत दोनों ही काफी बढ़ जाती हैं।

वैज्ञानिकों की तरफ से चंदन के वृक्षों पर परियोजना जारी

कृषकों की आमदनी में बढ़ोतरी करने के लिए केंद्रीय मृदा और लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) करनाल के वैज्ञानिकों की तरफ से चंदन के बेहतर और गुणवत्तापरक पौधों को विकसित किया जा रहा है। इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक डॉ. राज कुमार ने बताया है, कि चंदन के पौधों पर यह परियोजना कार्य संस्थान के निदेशक डॉ. आरके यादव के दिशा निर्देशन में किया जा रहा है। वर्तमान में भी चंदन के पौधे पर शोध बरकरार चल रहा है। उन्होंने कहा है, कि चंदन के वृक्ष से फायदा उठाने के लिए किसानों को 10-15 वर्षों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वैज्ञानिकों के द्वारा इसी दीर्घकालीन प्रतीक्षा को कम करने के लिए यह परियोजना जारी की गई है। इसके साथ ही चंदन के वृक्ष के पास किस मेजबान पौधे को रखें एवं कितनी खाद, कितना पानी दिया जाए आदि अहम पहलुओं पर भी कार्य चल रहा है, जिससे कि चंदन के पेड़ों से फायदा पाने का समयांतराल कम हो सके। प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार, संस्थान में एक एकड़ जमीन में चंदन के पौधे स्थापित किए गए हैं, जो कि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए हैं।

ये भी पढ़ें:
15 बीघे में लाल चंदन की खेती कर कैसे हुआ किसान करोड़पति

किसानों के लिए चंदन का वृक्ष काफी फायदेमंद है

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, चंदन का वृक्ष जितना पुराना होगा, बाजार में उतना ही ज्यादा उसका भाव होता है। यदि देखा जाए तो चंदन का एक पेड़ लगभग 15 वर्ष में तैयार होता है, तो बाजार में उस एक पेड़ की कीमत करीब 70 हजार रुपये से लेकर दो लाख रुपये तक हो सकती है। ऐसी स्थिति में फिलहाल आप अनुमान लगा सकते हैं, तो चंदन की खेती कर किसान कुछ ही वर्षों में लाखों की आमदनी सहजता से कर सकते हैं।

चंदन का पौधा बाकी दूसरे पौधों से खुराक लेता है

चंदन के पौधे के साथ में बाकी दूसरा पौधा भी लगाया जाता है। क्योंकि, यह वृक्ष स्वयं अपनी खुराक दूसरे पौधों की जड़ों से प्राप्त करता है। दरअसल, चंदन के पौधे की जड़ें अन्य दूसरे पौधों की जड़ों को अपने में जोड़ लेती हैं। फिर उसे मिलने वाली खुराक को वह अपनी खुराक में परिवर्तित कर लेता है, जिससे कि पौधा बेहतर ढ़ंग से तैयार हो सके।
उत्तर प्रदेश के मौसम में बदलाव और बारिश की संभावना

उत्तर प्रदेश के मौसम में बदलाव और बारिश की संभावना

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि कड़कड़ाती सर्दी का मौसम चल रहा है। किसानों को खेती–किसानी में बहुत सारी समस्याएं आती हैं। ऐसी स्थिति में यदि बारिश हो जाए तो ये समस्या और बढ़ जाती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में आगामी एक–दो दिन में बारिश की संभावना है। अब ऐसे में कृषकों के लिए कुछ खास बातें हैं, जिनका विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आगरा, हाथरस, अलीगढ़ और समीपवर्ती हिस्सों में बारिश होने की संभावना है।


पौधों में रोग ना लगे इसके लिए क्या करें ?

विगत बहुत सारे महीनों से तैयार फसल में कृषकों की काफी लागत और अथक परिश्रम लगी है। अब ऐसी स्थिति में किसान अपनी फसल को लेकर काफी फिक्रमंद हैं। फसल को बचाने के लिए सबसे आवश्यक है, कि प्रतिदिन खेती की निगरानी की जाए। यदि पौधे के पत्ते में कोई रोग नजर आए, तो तुरंत उखाड़कर जमीन के अंदर दबा दें। यदि अधिक रोग नजर आए तो तुरंत विशेषज्ञों का मशवरा लें और सावधानी के लिए एक फफूंद नाशक का छिड़काव कार्बेंडाजिम मैनाकोजेब अथवा फिर मेटलैक्सिल और मैंकोजेब का छिड़काव भी कर सकते हैं। 

  ये भी पढ़ें: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने कई राज्यों में बारिश को लेकर अलर्ट जारी किया 

आलू की फसल में झुलसा के लिए अनुकूल मौसम है, तो इना फंगीसाइड का 2 ग्राम प्रति लीटर में छिड़काव अवश्य कर दें। अगर सरसों की फसल में सफेद पत्ती धब्बा रोग होता है, तो 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड अथवा कार्बेंडाजिम मैनाकोजेब का छिड़काव करें।


ये काम भूलकर भी ना करें 

अगर आपके इलाके में बारिश होने की संभावना है, तो सिंचाई ना करें। खेत में ज्यादा नमी होने पर सब्जियों वाली फसलों को प्रमुख रूप से नुकसान हो सकता है। वहीं, बहुत सारी बीमारियां लग सकती हैं। बतादें, कि रोगाणु, कीटनाशक अथवा खरपतवार नााशक का छिड़काव सबसे बेहतर है, जब धूप खुली होती है। अगर कोहरा और बादल छाए हुए हैं और बारिश की संभावना है तो कीटनाशक छिड़काव से भी बचें। 


ये भी पढ़ें: किसान दे ध्यान इन कीटनाशक का अब नही होगा प्रयोग, सरकार ने लगा दिया प्रतिबंध 


यदि फसल में फूल गए हैं, तो किसी तरह के रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से बचें। किसी भी फसल में फूल रहे हैं। वहां रासायनिक छिड़कावों का उपयोग ना करें। फूल की ग्रोथ (बढ़वार) काफी रुक जाऐगी। फूल झड़ जाऐंगे, जिससे दाने और फल नहीं बन पाऐंगे। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक तरीकों, धुआं, नमी, नीम का तेल और कंडों की राख का उपयोग करें। इसके अतिरिक्त खेत में मधुमक्खियां पाल रखी हैं और वो उधर आती हैं तो दिन के वक्त रासायनिक छिड़काव नहीं करें वर्ना वो मर जाऐंगे। शाम को मधुमक्खियां छत्तों में लौट आती हैं उस समय इस्तेमाल करें। 

फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते समय बरतें सावधानी, हो सकता है भारी नुकसान

फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते समय बरतें सावधानी, हो सकता है भारी नुकसान

फसलों पर कीटों का हमला होना आम बात है। इसलिए लोग पिछली कई शताब्दियों से कीटों से छुटकारा पाने के लिए फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते आ रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि किसानों ने रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा दिया है। साथ ही जैविक कीटनाशकों का प्रयोग तेजी से कम हुआ है। बाजार में उपलब्ध सभी कीटनाशकों को प्रमाणिकताओं के आधार पर बाजार में बेंचा जा रहा है, इसके बावजूद रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से फसलों को नुकसान होता है और किसान इससे बुरी तरह से प्रभावित होते हैं।

फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग

इन दिनों बाजार में विभिन्न तरह के कीटनाशक उपलब्ध हैं। लेकिन इनको खरीदने के पहले किसान को पूरी जानकारी होना आवश्यक कि वो किस कीटनाशक को खरीद रहे हैं और वह रोग को खत्म करने में सहायक होगा या नहीं। वैसे आजकल बाजार में ऐसे कीटनाशी भी आ रहे हैं जिनका प्रयोग अलग-अलग फसल के लिए भी कर सकते हैं। इससे फसल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा। सरकार ने कुछ कीटनाशकों को कुछ फसलों के लिए निर्धारित किया है। इन चुनी गई फसलों में विशेष कीटनाशक ही डाले जा सकते हैं।

ये भी पढ़ें:
इस राज्य में किसान कीटनाशक और उर्वरक की जगह देशी दारू का छिड़काव कर रहे हैं
 

कई बार देखा गया कि कीटनाशकों के कारण फसलें नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं। इसलिए सरकार ने कुछ कीटनाशकों को बाजार में बेंचने से प्रतिबंधित कर दिया है। इनमें मालाथयॉन कीटनाशक प्रमुख है। इसका उपयोग ज्वार, मटर, सोयाबीन, अरंडी, सूरजमुखी, भिंडी, बैगन, फूलगोभी, मूली की खेती में किया जाता था। इसके अलावा क्युनलफोस और मैनकोजेब को प्रबंधित किया जा चुका है। इन दोनों कीटनाशकों का उपयोग जूट, इलायची, ज्वार, अमरुद और ज्वार की फसल में किया जाता था। 

सरकार ने फसलों के ऊपर खतरे को देखते हुए अक्सिफलोरफेन और क्लोरप्यरिफोस को भी प्रतिबंधित कर दिया है। इनका प्रयोग आलू, मूंगफली, बेर, साइट्रस और तंबाकू की फसलों में किया जाता था। कई बार ये कीटनाशक फसलों के साथ-साथ आम लोगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीटनाशक खाद्य चीजों के साथ आपकी खाने की थाली में पहुंच जाते हैं और आपके भोजन का हिस्सा बन जाते हैं। जो मानव शरीर के लिए बेहद नुकसानदेह होते हैं।